ऑनलाइन हाजिरी:

शिक्षक को समाज की रीढ़ मानने वाली भारत की संस्कृति ने कब धीरे- धीरे शिक्षकों को चोर और गुनाहों की तस्वीर साबित करना शुरू कर दिया, पता ही नहीं चला।

उत्तर प्रदेश में सरकारी तुगलकी फरमान सुनाया गया कि विगत 8 जुलाई से सभी बेसिक अध्यापक गण ऑनलाइन हाजिरी देंगे। हालांकि आम जनता जो शिक्षक और उनकी समस्याओं से दूर दूर तक परिचित नहीं उसे यह फरमान ऐसा लगा मानो बस ऐसा लागू होते ही देश की सारी समस्याओं से निजात मिल जाएगी।

इसी बीच शुरू हुआ तमाम समस्याओं से जूझ रहे लाखों शिक्षकों का ऑनलाइन हाजिरी पर विरोध प्रदर्शन।

शिक्षक काली पट्टी बांधकर लगातार इस फरमान का विरोध जाता रहे हैं। अधिकारियों और सरकार को अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंप रहे हैं। हस्ताक्षर अभियान, धरना प्रदर्शन, काली पट्टी बांधकर शिक्षण कार्य, गैर शिक्षण कार्य के पदों से इस्तीफा आदि तरीके से लगातार विरोध जताया जा रहा है।

विरोध का स्तर इसी आंकड़े से पता चलता है कि भारत में ट्विटर अकाउंट पर 14 जुलाई को #Boycottdigitalattendance  के साथ यह अब तक का सबसे बड़ा ट्रेंडिंग टॉपिक बना। प्राथमिक शिक्षक संघ ने इतिहास रचा। इससे पहले इतने ट्वीट भारत में किसी टॉपिक पर नही हुए । शिक्षकों की एकता ने T20 WORLD CUP टॉपिक को पीछे छोड़कर ये इतिहास रचा ।

इसी क्रम में 15.07.2024 को राष्ट्रीय शैक्षिक महासंघ, उ०प्र० के प्रतिनिधि मण्डल के प्रदेश प्रभारी श्री महेंद्र कुमार जी व संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों की महानिदेशक (स्कूल शिक्षा) श्री मती कंचन वर्मा जी के साथ बैठक संपन्न हुई। आशा थी कि शिक्षक हित में संगठन की यह बैठक अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं निर्णायक सिद्ध होगी।

लेकिन लगातार 8 दिन से विरोध कर रहे शिक्षकों की जायज मांगों के प्रति सरकार के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। शिक्षक संगठनों के साथ महानिदेशक की वार्ता विफल रही और शिक्षक संगठनों का कहना है कि जब तक उनकी मांगे नहीं मानी जाएगी ऑनलाइन हाजिरी का बहिष्कार जारी रहेगा…

शिक्षक और सरकार के बीच लगातार यह तनातनी वाला माहौल चल रहा है । एक तरफ समस्याओं का भंडार समेत शिक्षक और एक तरफ सरकारी तुगलकी फरमान।

आइए एक नजर डालते है शिक्षकों की समस्याओं पर:

  • प्राइवेट स्कूल और अन्य विभाग से बेसिक शिक्षा की तुलना करके शिक्षकों पर सारे दोषों का ठीकरा फोड़ा तो जाता है लेकिन दोनों स्तर पर मिलने वाली सुविधाओं के अंतर की बात कोई नहीं करता ।
  • अन्य विभागों में द्वितीय शनिवार का अवकाश, हाफ डे लीव और ई एल का प्रावधान है। जबकि बेसिक के शिक्षको का इन अवकाशों से जहां दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं वहीं रविवार को भी शिक्षकों से काम लेने के बाद, इन्हें प्रतिकर अवकाश तक नहीं दिया जाता।
  • जिस प्रदेश में सरकारी सफाई कर्मी भी राज्य कर्मचारी की श्रेणी में आता हो वहां शिक्षक को आज आज़ादी के 75 साल बाद भी इस काबिल नहीं समझा जाता कि वो उसे राज्य कर्मचारी का दर्जा मिले।
  • RTE 2009 के अनुसार प्राथमिक शिक्षण के लिए 200 दिन /800 घंटे निर्धारित हैं।
    उत्तरप्रदेश में गत वर्ष लगभग 250 दिन(1500घंटे)6 घंटे प्रतिदिन विद्यालय संचालन रहा। फिर भी शिक्षक कामचोर हैं।
  • प्रतिदिन अधिकारियों एवं कुछ पत्रकारों के बिगड़े बोल बोलते हैं और भारत की गुरु शिष्य परम्परा वाली जनता द्वारा उनकी पीठ थपथपाई जाती है।
  • स्वास्थ्य विभाग का कार्य दवा एवं सैनिटरी पैड वितरण एवं संचारी रोग की रोकथाम हेतु रैली व कार्यक्रम आयोजन, वन विभाग का कार्य वृक्षारोपण, चुनाव आयोग का कार्य मतदान जागरूकता एवं चुनाव और न जाने कितने अनगिनत काम शिक्षक द्वारा किए जाते हैं फिर भी सरकार द्वारा इन्हें कामचोर की संज्ञा से नवाजा जाता है।
  • शिक्षक लगातार छात्र नामांकन में कमी, घरेलू कार्य या खेती बाड़ी के काम के कारण छात्र उपस्थिति में कमी, छात्र के शिक्षण अधिगम में कमी, स्कूल में चोरी व अनेकों अनेक समस्याओं का जिम्मेदार ठहराकर मानसिक रूप से अधिकारियों द्वारा शोषित किया जाता रहा है।
  • जबकि 99% इन समस्याओं का कारण अभिभावक का बच्चों के प्रति गैर जिम्मेदाराना रवैया, जागरूकता में कमी और अशिक्षा का होना है।

विसंगतियां:-

  • शायद ही कोई अन्य विभाग ऐसा हो जो प्रदेश के सरकारी स्कूलों की भांति इंटीरियर हो। जहां कहीं – कहीं सरकार आज तक रोड न पहुंचा पाई हो वहां शिक्षक को ठीक नियत समय पर उपस्थिति वाला बटन दबाना होगा।
  • भारत भूमि पर, जहां की गुरु शिष्य परम्परा की मिशाल अद्वितीय है। वहां शिक्षक को आजादी के 75 साल बाद भी किसी भी प्रकार की मेडिकल सुविधा नहीं दी जा सकी।
  • जिन ग्रामीण अंचलों में आजादी के 75 साल बाद भी नेटवर्क नहीं आता उन क्षेत्रों में शिक्षक डिजिटल हाजिरी देगा।
  • जिस शिक्षक के पास न ई एल हैं न हाफ डे है, हैं तो मात्र 14 दिन के आकस्मिक अवकाश । जिसमें भी यदि आप 3 दिन एक मिनट की भी देरी से पहुंचेंगे तो आपका एक आकस्मिक अवकाश निरस्त कर दिया जाएगा।

चाणक्य ने कहा था -” शिक्षक कभी साधारण नहीं होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं। जो गुरु शिष्य को एक अक्षर का भी ज्ञान कराता है, उसके ऋण से मुक्त होने के लिए उसे देने योग्य पृथ्वी में कोई पदार्थ नहीं है।” अगर समाज को एक उन्नत दिशा में ले जाना है तो सबसे पहले शिक्षक को सम्मान देना होगा। सरकार को चाहिए कि वो इन अनगिनत समस्याओं का कोई निवारण अवश्य निकाले।

https://raftaarlive.in/ayushman-bharat-pradhan-mantri-jan-arogya-yojana/

hi
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